न चले रे हवा न मिले रे दुआ
रुकी है संसद कैसे बने ये सभा ।
न तूने कुछ किया न मैंने कुछ किया;
करोड़ों की अशरफी कौड़ी में खो दिया ।
बोते बीज बनाते बाँध बचाते बाढ़ ;
खेतों की फसल को अख़बार खा गया,
हर योजना बस ट्विटर पर छा गया !
बरसों से वो मंदिर ही नहीं गया ;
तूने क्या कह दिया उन सबको ;
कल वो अल्लाह और राम पर लड़ गया ।
खाली पेट खाली जेब थी उसकी;
सुबह से कई चक्कर लगा चूका ;
राशन भी तो अब डिजिटल जो हो गया ।
दुहाई भी पड़ी सुनाई ;
रात की कोर्ट भी सजाई ;
बरसो बीते ..
अब तो दिन में भी नहीं देख पाती ;
वो बुढ़िया !
रात दिन क्या बेटे के मौत का मुकदमा ,
अब उसकी मौत ले आ गया !
कोई खड़ा मौत के साथ,
कोई पड़ा मौत के पीछे,
न खोया था तुमने कुछ ..
तो तुम चिल्लाते रहे ..
चीख के जिनकी साँसे छुटी ..
वो कहने से सकुचाते रहे ।
#SK …
बहुत बढ़िया आपकी रचना अच्छी लगी, शुभकामनाये !
Thanks !!