प्रायश्चित के शब्द

कभी कभी लिखता हूँ कविता या निरंतर प्रायश्चित के शब्द जब दुनिया के तमाम द्वंदों से थक के मायुस होता हूँ लिखता हूँ झूठी कल्पनाओं को कि किसी भ्रम में …

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थोड़ी सी जिंदगी

बड़ी संजीदगी से भर देना जैसे कितने आसान से है जिंदगी के हर फलसफे ऐसी तल्लीनता से सुनना तुम्हें यूं प्रतीत होता है कोई दार्शनिक समझा रहा जीवन के गूढ़ …

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ईश्वर और कविता

ईश्वर रचता है प्रकृति बीजों से फूटते कोपल उससे निकलती पंखुड़ियां आसमानों में फिरते हुए बादल और उससे गिरती हुई बूंदें । ईश्वर बनाता है संसार में संघर्ष सपनों संयोग …

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Lighthouse

जब रात के घने अंधेरे में समुद्री जहाजों को कोई राह प्रतीत नहीं होता वो प्रकाशस्तम्भ की ओर रुख करते हुए आगे बढ़ते । बिना किसी संवाद के बस प्रकाशस्तम्भ …

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