कभी कभी लिखता हूँ कविता
या निरंतर प्रायश्चित के शब्द
जब दुनिया के तमाम द्वंदों
से थक के मायुस होता हूँ
लिखता हूँ झूठी कल्पनाओं
को कि किसी भ्रम में उलझी
हुई दुनिया में सब ठीक है
मान लेता हूँ सभी के तर्क
जो सब को उचित न्याय्य
ठहराते हुए बनाते है क्षम्य
हर आलोचना और आक्षेप
की परिधि से परे हो के बस
लिखता हूँ प्रेम के कुछ शब्द !
#Sk