बचपन का एक कौतुहल जो हर बच्चा अपने माँ के आँचल में सीखता, चेहरा छुपाना, फिर शरारत भरी नजरों से देखना की सब उसको देख रहे या नहीं, कभी कभी जब चेहरे से आँचल को नहीं हटा पाता उलझ जाता तो अपने गुस्से को जाहिर करना कि कोई उसकी मदद करें, बच्चों के इस लुका छिपी के खेल में हम भी अपने बचपन मे लौट जाते ।
” माँ के चुनर में तेरी अटखेलियाँ,
लुका-छुपी की नयी सी कहानियाँ,
छिप छिप कर तुझे मैं बुलाऊँ ,
तू ढूढें इधर उधर जब ,
मिल जाती मुझको बचपन की निशानियाँ । “
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