उजाड़ दिन ,
जैसे कुछ किताबें इधर उधर हो बिस्तर पर ,
कपड़े मुड़े सिमटे फेंकें हुए ,
क्या कहाँ किस ओर क्या पता ,
घण्टों खोजो तो न मिलता कोई सामान ,
ये थे उजाड़ घर के कुछ अस्त व्यस्त कमरे ।
अनबन, आधे अधूरे मन से बातें,
बेरुखी, तकरार और जिरह ही जिरह,
घण्टों का सन्नाटा कोई किसी को न समझे,
अगर मन से प्रेम खत्म हो जाये तो …
ऐसे ही उजाड़ हो जाता होगा जीवन ।
#SK