कौन नहीं रो पड़े ४० घरों के चिराग बुझ गए ; वो सैनिक जो हमारे लिए धुप ठण्ड बरसात में भारत के हर भूभाग पर रेगिस्तान, पहाड़, नदी , जंगल कहीं भी खड़े रहने को तैयार रहते ; हमारे लिए हम होली दिवाली मनाये ; हम सुकून से सोये वो सीमा पर खड़े रहते !
और कैसी क्रूर है नियति ; जिस माँ के लिए वो अभी भी बच्चे थे, जिस पिता को इंतजार था की उसकी अर्थी को कंधा उसका बेटा देगा ; वो पत्नी , वो बेटा , वो बेटी , वो बहन सभी रिश्तों पर भारी पड़ गयी नियति ! बारूद से सने क्षत – विक्षत शरीर को देखकर किसका कलेजा न दहले !
ये ऐसा अमानवीय कृत्य है आतंकियों का जिसे कोई भी देश बर्दाश्त नहीं कर सकता ; आतंक ने भारत देश को चुनौती दी है ; कब तक आतंक का विष घुलता रहेगा इस देश के रगों में, अब समाधान हो इस आतंक के जहर का !
वीर सपूतों के शहादत को नमन, आपके खून के हर कतरे का ऋणी रहेगा ये भारतवर्ष ! !
शहीदों की बस एक ही गूँज सुनाई पड़ रही ” सिलसिला ये बाद मेरे यूँ ही चलना चाहिए मैं रहूं या ना रहूं भारत ये रहना चाहिए ; रक्त की हर बूँद तेरी है तेरा अर्पण तुझे.. युद्ध ये सम्मान का है मान रहना चाहिए मैं रहूं या ना रहूं भारत ये रहना चाहिए !!