ड्रीमकैचर्स – 2 लटका दिए है अब ये मेरे लिए सपने पकड़ेंगे, कुछ दिनों से सपनों को देखने का सिलसिला जैसे बंद सा पड़ा हुआ है, सपनों के बिना रात ही नहीं जिंदगी भी सपाट सी लगती , जैसे बिना चाँद तारों के आसमान की कल्पना कीजिये, दूर दूर तक सब कुछ सपाट काला अँधेरा, काला कैनवास चारों तरफ । सपने भी वैसे ही है अंधेर जीवन के चाँद और तारे ।
ड्रीमकैचर्स के धागों को मैंने बोला हर उस ख्वाब को तुम बाँधना जो अब मेरे पास नहीं आते, जैसे मेरे सुबह उठने और रात को सोने की नियत घटना में ये ख्वाब भी कहीं खो गए हो, पराये से हो गए हो | तुम लाना ऐसे ख्वाबों को जैसे मैं बचपन में देखा करता था वो अंतरिक्ष, कोई विमान, कोई ग्रह कोई उपग्रह ! तुम लाना मेरे ख्वाब जो मुझे आगे बढ़ाते थे इस भीड़ से निकलने की ऊर्जा देते थे, वो ख्वाब जिसमें नदी का किनारा था, दोस्तों की दोस्ती थी, जीवन की रंगोली थी | नीरस उपवन और सूखे पत्तों वाले ख्वाबों को मत बुलाओं, मेरे लिए तुम मेरे जैसे सपने पकड़ना !
धीरे धीरे मैं नींद के आगोश के पहले सुन रहा दुष्यंत की पंक्तियाँ
” घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर जाना
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना “
#SK