कल का नशा आज चेहरे पर,
धीमे धीमे आँखों से उतर जाता !
दिन की थकन रात की आगोश में जाती;
सुबह होती और फिर सब संवर जाता !
बिखरा बिखरा तुझसे कुछ कहता ;
क्या सोच फिर फासला बना लेता !
कब तक रुकूँ और देखूँ तेरी राह ;
कुछ सोच यूँ राहों पर निकल जाता !
क्या रुके और देखे इसका चेहरा ;
बड़ी तेज है जिंदगी रोज ही ढलती !
ढलता ही रोज बोझिल शामों में ये ;
अँधेरों में गुजरकर बिखरता निखरता !
ये जिंदगी जो भी है ऐसे ही जीता !
खूबसूरत अलफ़ाज़