उफ्फ तक नहीं करता बदलते मौसमों से,
डटा तना पत्थर सा बन खड़ा रहता ;
हरपल हरयाली बन मुस्काता रहता ;
ये बिखरे बिखरे शाख ही मेरा अक्स है !
गिर जाती है पत्तियां मेरी कई ;
छूट जाता है इनसे नाता मेरा ;
असह दुःख को झेल जाता ;
उफ्फ तक नहीं करता मैं ;
ये बिखरी बिखरी सुखी पत्तियां ही,
तो जीवन का सत्य है !
अपने फूलों की महक दे जाता ;
उगते फलों का जीवन दे जाता ;
मुझपर लगी झूलों को बचपन दे जाता ;
और अंत मौत की दहक दे जाता ;
क्या मेरे देने का कोई अंत है ?
मैं एक पेड़ हूँ कहीं खड़ा ;
मेरा जीवन अब अनंत है !!
#SK { एक पेड़ जो अनेकों मौसमों को झेलता और हमें कुछ सिखाता ; एक कविता पेड़ और जिंदगी के संदर्भ में ! }