एक कैनवास मन में बनता है ; उस जगह जाकर लगता कुछ देर और रुक पाता तो तस्वीर इसकी जेहन में पूरी सी बैठ जाती !
पर उस रस्ते के ऊपर से गुजर जाता रोज ; रोज उसी नियत समय पर वो कैनवास कार्बन प्रति के जैसा छप जाता ! कई दिन कोशिश भी की बिखेर के पन्ने और क्रेयॉन्स बचपन वाले ; पूरा डब्बा अभी भी पड़ा है पास में ; बना डालूँ तस्वीर पर ; क्या बनाता मायूस मन से ; कोई चित्रकार तो नहीं जो उँगलियाँ फिरा दूँ और तस्वीर बन जाये ! पर वो कैनवास मन से उतरा नहीं ; आँखें ठहर ही जाती उस बड़े से आयाम को एक फ्रेम में भरने को ! हाँ शब्दों से कैनवास पर में कुछ लिख सकता ; हूबहू तस्वीर जैसी कलाकृति !
आखिर उस रस्ते से कितने हजारों रोज गुजरते ; मुझे ही ये दृश्य कैनवास प्रतीत हुआ … ? इस सवाल में ज्यादा उलझा नहीं जा सकता ;
तस्वीर पर आते है उस तस्वीर के कई सिरे है ; मैं रोज अलग अलग सिरे पकड़कर उसे देखता था ; एक लम्बी सी कड़ी है लम्बे घने पेड़ों की ; पुराने मालूम होते, आसमान को छूते हुए ! पता नहीं क्या क्या देखा होगा इतने लम्बे उम्र अंतराल में इन पेड़ों ने ; उसके ठीक निचे समानांतर पड़ी है छोटे पेड़ों और घासों की लम्बी चादर ! ये नदी के एक ओर है सारे ; दूसरी तरफ नदी के कल कारखाने का धुआँ ; मशीनों में उलझी जिंदगी ! ये नदी आगे पता नहीं कहाँ जाती पर हाँ लगता आसमान को चुम कर उसमे ही समाती होगी !
सुदूर नदी और आसमान के मिलन पर एक पुल भी है पुराना ; मालगाड़ी जाती हुई लगता ऐसा जीवन चलायमान है ! वो पुल पुराना दूर से खिलौने सा लगता लेकिन ये विरासत है सदियों का ! ये कैनवास इतना ही है लेकिन रोज देखने पर लगता कल की तस्वीर पर बीते रात कोई ब्रश चला गया हो ; कभी धुंध होती और कभी खिली धुप ! कभी पूरा कैनवास ही बारिश में नहाया होता ! कभी उस नदी के ऊपर पक्षी के दो जोड़े को प्रेम से उड़ते देखता हूँ और किसी दिन उसे अकेले ; विरह में मायूस तो नहीं लगता पर उड़ता वो आसमानों पर उतने उमंग से ही ; मुझे पुल के ऊपर का सूरज रोज अनेकों रंगों में लगता लाल, नारंगी, मटमैला, पीला, भूरा पता नहीं कुछ मतलब होगा हेर रंगों का ; जैसे जिंदगी के रंगों से मिलता जुलता हो ये ! नदी के दूसरे तरफ कल कारखाने के बारे में शब्दों का सृजन रुक जाता ; चिमनी का धुआँ आसमान में जाता हुआ और काला गाढ़ा मशीन से निकलता द्रव नदी में गिरता ; जैसा मेरा कैनवास भी काले रंग से मैला हो रहा ; नहीं सोचता इस ओर के बारे में !
एक दिन नदी में एक नाव दिख जाती; मछुआरें नीली रस्सी की जाल फ़ेंक चुपचाप कुछ सोच में पड़े; मांझी नाव को खेता हुआ आसमान की ओर देख …. सुन तो नहीं पाया कुछ गुन गुना रहा था ; और ऊपर आज वो दो पंछी आसमान में साथ साथ थे.. जरूर नाव वाला कोई प्रेम गीत गा रहा होगा !
ये था मेरे शब्दों का कैनवास – आप भी किसी राह पर, किसी सुबह, किसी शाम ऐसे ही कैनवास से रूबरू हो सकते ; कोशिश कीजियेगा ! – सुजीत
{कैनवास : हर सुबह मेट्रो यात्रा के दौरान यमुना नदी के पुल से गुजरते हुए }
6 thoughts on “शब्दों का कैनवास – Words on Canvas (Night & Pen) : #SK”
निशांत यादव
(November 2, 2014 - 7:55 pm)लोग कहते है कि तस्वीरें बोलती हैं!
हाँ सही तो है !
में भी भला इनसे इंकार कहाँ करता हूँ, लेकिन तब क्या जब इन बोलती तस्वीरों की आवाज को सुनने वाले कान ही वहरे हो जाएँ लेकिन जव एक लेखक तस्वीर को कैनवास पे उकेरता है तव तस्वीर का प्रतिबिम्ब शब्द भी होते , कोई इंसान वहरा और गूंगा हो सकता है लेकिन अँधा और वहरा नहीं
shweta
(November 3, 2014 - 2:49 am)Simply awsm …… 🙂
Sujit Kumar Lucky
(November 4, 2014 - 6:12 pm)really thanks for appreciation !:)
शब्दों का कैनवास – Words on Canvas - NewsU
(November 27, 2014 - 6:30 pm)[…] Author: सुजीत भारद्वाज (Twitter: @sujit_kr_lucky) Original Post […]
#SK – 100 Poems in 2014 : Rewind & Revival !! | Sujit Kumar Lucky
(December 23, 2014 - 1:49 pm)[…] शब्दों का कैनवास – Words on Canvas (Night & Pen) : #SK […]
शब्दों का कैनवास – Words on Canvas - तीखी मिर्ची
(May 16, 2015 - 1:13 pm)[…] Author: सुजीत भारद्वाज (Twitter: @sujit_kr_lucky) Original Post […]
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