{महानगर बसेरा है आगंतुक प्रवासी अनेकों लोगो को – छुट्टियों में घर को लौटना फिर महानगर की भीड़ में शामिल होना; कुछ जो अभ्यस्त है आने जाने की प्रक्रिया से कुछ नये संगी साथी पहली बार घर जाते ; इसी लौटने और पुनः जीवन की आपाधापी में खोने की एक कविता – सुजीत }
रस्ते पर फिर भीड़ हो आई,
छुट्टियों से लौट के यादें शहर को आई ।
बीत गया सावन अब तो ;
सर्दी की सुबह की ठंडी हवा खिड़की पर हो आई ।
हो गयी फिर भीड़ में शामिल ये कदमें,
जिन्दगी जीने से फिर वाकिफ हो आई ।
उसे तजुर्बा कम था लौटने का,
यादें उसके संग ही लौट कर आई ।
रंग ढंग सीख लेगा कुछ वक़्त हो जाने दो,
खुद में सिमटने का हुनर अब उसमें हो आई ।
ये मौसम लौटा है ख्वाबों को लेकर,
उसकी आँखों में एक खुशी सी नजर है आई ।
इस तरह छुट्टियों से लौट के यादें शहर को आई ।
#SK