आज फिर सदियों के बाद वही पुरानी आहट सी थी,
जो भुला नहीं हूँ अब भी जेहन में बची एक हसरत सी थी ।
कुछ दो शब्दों पर तर हो गयी आँखे ,
सो गयी कब नींद में बोझिल ये आँखे ।
किसी अजनबी के तरह तुम तो लौटे नहीं थे,
लौट के उन राहों में फिर जाने की मेरी ही चाहत नहीं थी ।
रूबरू भी थे सामने तुमसे कुछ नजरें चुराए भी थे,
छुप जाये इन चेहरों की उदासी ऐसी साजिश सी थी ।
कह ना सका अब ना लौट आना फिर;
यूँ हरदम मेरी मिन्नतों की ख्वाहिश सी नहीं थी ।
फिर सुबह यादों की पुरानी आहट सी थी,
किसी सफ़र पर जाने की मुस्कराहट सी थी ।
अब भी दबी बसी पुरानी कोई चाहत सी थी,
उन क़दमों की वही पुरानी आहट सी थी ।
# SK .. Poetry Continued … !!