सोशल मीडिया और गाली गलौज ….
बहुत अच्छा प्रश्न है ; व्यापक है ; समस्या है ! लेकिन रोज एक ही बात बोलना की गाली गलौज हो रहा , ये कौन लोग है , वो कौन लोग है ! बीजेपी कांग्रेस व्हाट्सप्प फेसबुक तू तू मैं मैं ! आखिर कब तक यही जुमला फेंकते रहेंगे ये कौन लोग है ये कौन लोग है – आखिर लोग तो निश्चित तौर पर मंगल ग्रह के नहीं होंगे जो किसी न्यूज़ पर गाली – गलौज करने आते होंगे ! गाली भी लेवल लेवल के है – पढ़े लिखे पत्रकार जब देश के प्रधानमंत्री को नसीहत देते की खुनी पंजा वाला आदमी आज अमरीका घूम रहा इत्यादि इत्यादि खैर ये तो बुद्धिजीवी वर्ग वाला गाली है इसका तो कोर्स होता है ये सर्टिफाइड टाइप की गाली इसको आपने आईफोन से ट्वीट किया होगा वजन होगा इसके उलट में कोई कार्बन और लावा से फ्लैट भाषा में गाली गलौज कर जाता है तो समस्या है होनी चाहिए ! इस विषय को आगे नहीं बढ़ाते , मूल बिंदु पर चलते। ….
संदर्भ पर आते है गाली गलौज का कोई समर्थन नहीं कर रहा ; हम समस्या के जड़ में नहीं जाते सोशल मीडिया का प्रादुर्भाव विगत ५ सालों में बढ़ा है ; मोबाइल और इंटरनेट भी क्रांति की तरह आया तो समस्या यहीं से शुरू होती विज्ञानं सृजनात्मक है तो विध्वंशक भी है, हथियार बना सेना इस्तेमाल करती अब समाज में कोई उसी हथियार से उपद्रव करता डराता धमकाता तो हमने क्या किया, हथियार पर निबंध लिखा , नहीं ! हमने कानून बनाये, लोगों को जागरूक किया, स्कूल से कॉलेज में उस संविधान के बारे में बताया की सामाजिक उपद्रव अपराध है !
आइए चलते है इंटरनेट विहीन समाज की ओर ये कहीं भी हो सकता पटना बनारस दिल्ली कहीं भी ; क्या आपको गली के मुहाने पर बैठे लड़कियों पर सीटी बजाते लड़के नहीं दिखे, क्या कॉलेज के गेट पर बाइक चमकाते लड़के नहीं दिखे, आप पर फब्ती कसते लोग नहीं मिले, स्कूल में आपके प्रश्न पूछने पर अभद्र भाषा में बोलने वाले लड़के पिछली बेंच पर तो जरूर ही मिलें होंगे जो कहते होंगे “साला बड़ा आया पढ़ने वाला” सड़क पर ओवरटेक करने पर पीछे से आवाज तो जरूर आई होगी “बाप का सड़क समझता है **** “. ; ये समाज का एक तत्व है , एक हिस्सा है जिसके दिमाग में ये अभद्रता पलता है ! और इन्ही सब किसी बात के बढ़ने पर हम उस लड़के के पिताजी के पास, या स्कूल के हेडमास्टर के पास, या रोड पर बाता-बाती पर पुलिस के पास जाते या गए होंगे ! इसका मतलब एक उपाय है कानून है व्वयस्था है इस अभद्रता के खिलाफ ! शिक्षा बढ़ी जागरूकता बढ़ी और कमोबेश ही सही समाज में सुधार हुआ !
अब उसी समाज उसी तत्व उन्ही लोगों को एक 3जी सिम, एक मोबाइल या लैपटॉप, वाय-फाय राऊटर से जोड़ देते, एक नया आयाम खुल गया पहले तो सामने मोहल्ले के लोग थे टिप्पणी करने के लिए अब तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक संसद से लेके विधान सभा तक न्यूज़ से लेके सिनेमा तक खेल से लेके खिलाड़ी तक, ये समस्या क्या बीजेपी कांग्रेस तक है ? ट्रोल तो हर चीज में पनपता जा रहा !
समस्या वहीँ है हमने इस समाज को इंटरनेट का झुनझुना तो पकड़ा दिया पर बजाए कैसे, कब , कितना , क्यों , कहाँ ये नहीं बताया न सिखाया ! क्या स्कूल से कॉलेज तक कोई पाठ्यक्रम शामिल हुआ नागरिक शास्त्र की किताबों का संसोधन हुआ जहाँ सड़क के नियम के साथ मोबाइल चलाने और गाली देने न देने की कुछ नियम हो ! समस्या लोग नहीं व्वयस्था है ; और इसी व्वयस्था की खामी का कोई राजनैतिक उपयोग-दुरूपयोग अपने अपने गणित के हिसाब से इस इक्वल टू बटा जीरो कर रहे !
अगर बुद्धिजीवी मानते गाली गलौज पर रोज दू चार हजार वर्ड का आर्टिकल लिख सकते तो इसके निदान पर क्यों नहीं , क्यों नहीं सब मिले के एक मसौदा बनाए सोशल मीडिया के उपयोग , इसके प्रबंधन, इसके नियम कानून परिभाषित हो, इसके दुरूपयोग की सीमा , सोशल मीडिया को जागरूकता का विषय बनाना, सोशल मीडिया नीति आयोग भी बना डालिए, सोशल मीडिया को पाठ्यक्रम में शामिल करना, सोशल मीडिया मॉनिटरिंग क्यों न हो जो उपद्रवी कंटेंट को रोके, सोशल मीडिया और राजनैतिक उपयोग पर विधान क्यों न बने, सोशल मीडिया पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में मीडिया या कोई अन्य संस्था कैसे उपयोग करें इस पर क्यों नहीं कोई पहल हो !
इस पर भी मीडिया मार्च निकाल कर सरकार और संसद तक जा सकती ; एक मोमबत्ती इंडिया गेट पर इसी गाली गलौज के नाम ही सही या मुन्ना भाई के तरह बापू के राह पर गाली गलौज वालों को गेट वेल सून भी कहा जा सकता ! वो बीमार है उनके अच्छे होने की कामना तो कर ही सकते !
लेखक सोशल मीडिया एक्सपर्ट है (निजी राय ) – सुजीत कुमार
आईये एक मुहीम अपनाते
” सोशल मीडिया पर जो लोग गाली गलौज करते वो बीमार है ! उन्हें गेट वेल सून कहिये ! “