हृदय का एक कोना,
तुम्हारा एक हिस्सा था वहाँ,
तेरा चेहरा और कई तस्वीरें,
भरने लगा है वो,
उलझनों से अब,
जद्दोजहत तो होती है,
अकेले उन्हें हटाने की,
शायद रख पाता तुम्हें पर,
तुमने भी कोई कोशिश नहीं की !
ऐसे तो बसी है मन में,
एक सुन्दर कृति पुरानी,
रूखे रूखे रुख ने तेरे,
कुछ उसको भी तो घिस दिया,
जैसे रेगमाल रगड़ दिया हो किसीने,
कभी मेरे शब्दों के आईने से देखना,
तेरा चेहरा अब वैसा मासूम नहीं रहा !
बहुत बढ़िया poem
Hello Mr. SK
I went thru some of your writings and i really liked them, i mean there is honesty, there is complain, there is depth and in short it shows the sensitivity within u. and that was all enough to inspire me. (i perceive that u have very creatively harnessed ur pain so as to convert it to productivity and positivity)
Thanks and regards.
just checking whether reply is being sent successfully
🙂
Thanks a lot for your appreciation !!
Shukriya Sir !
Lovely poem
thanks