ये कैसी शरारत करते हो,
रात तारों के साथ ऊँघने छोड़ जाते हो,
तेरे जाने के बाद एक तारा,
पास आ बैठता,
कन्धों पर हाथ रख,
पूछता है तुम्हारी कहानी,
मैं उससे झूठ कहता की,
तुम एक दिन आने को कह गए हो,
उसकी हँसी चिढ़ाती है मुझे,
जैसे उसने बात न मानी हो मेरी !
किसी रोज आके दो घड़ी,
पास तो बैठो,
हाँ रात घनी हो बिना बादलों वाली,
उस तारे को दिखाना है मुझे,
जड़ना है उसके मुँह में ताला,
उसको पता चले जमीं पर चाँद होता है ।
ये कैसी शरारत करते हो;
रात तारों के साथ ऊँघने छोड़ जाते हो !
#सुजीत
8 thoughts on “रात और चाँद …”
gyanipandit
(June 14, 2016 - 11:19 am)बहोत ही बढ़िया कविता खास कर
“किसी रोज आके दो घड़ी,
पास तो बैठो,
हाँ रात घनी हो बिना बादलों वाली,
उस तारे को दिखाना है मुझे,
जड़ना है उसके मुँह में ताला,
उसको पता चले जमीं पर चाँद होता है ।”
ये पंक्तिया अच्छी लगी
lifestylehindi
(June 14, 2016 - 12:47 pm)सुजीत कुमार जी ,
आपकी रचना काफ़ी दिलचस्प लगी.
धन्यवाद्
Bloggeramit
(June 18, 2016 - 1:00 pm)Bahut hi sundar sujit ji
Sujit Kumar Lucky
(June 24, 2016 - 6:15 pm)Shukriya Amit 🙂
Sujit Kumar Lucky
(June 24, 2016 - 6:16 pm)स्वागत है अापका !!
Sujit Kumar Lucky
(June 24, 2016 - 6:16 pm)शुक्रिया सर !!
SUNIL SHARMA
(January 3, 2017 - 7:25 am)bahut khoob…bahut aacha likhe hai sujit babu…raat chand aur tum…
Sujit Kumar Lucky
(January 4, 2017 - 4:39 am)धन्यवाद मित्र !!
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