इस शाम में उदासियाँ लपेट मैं
चुपचाप यूँ ही कहीं ..
खामोशियों से लड़ते हुए,
थककर बहुत ऊब कर बैठा हूँ …
नदी के किनारे कुछ दुर से,
बलुवा जमीन पर हवा थिरक कर
दिन भर के उमस से गीले हुए बदनों पर टकराकर
एक ऐसी ठंडक दे जाती ,
जैसे गर्म तपते दिन को चुपचाप सहलाकर
किसीने ढलने को कहा हो |
दिन की यायावरी कर,
हर शाम से मेरी यारी है !
#SK