ए पी जे अब्दुल कलाम – अवुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम (भारत के राष्ट्रपति, मिसाइल मैन, लेखक) जन्म 15 अक्टूबर 1931 – 27 जुलाई 2015, रामेश्वरम, तमिलनाडु, भारत ! डॉ कलाम हमेशा से बच्चों युवाओं ही नहीं पुरे देश के लिए प्रेरणाश्रोत रहे ! इनका जीवन हर एक देशवासी को सपने देखने का हक़ देता, आपके अंदर जज्बा हो तो आप अपने सपनों को पूरा कर सकते ! डॉ कलाम ने विज्ञान और सुरक्षा में जो योगदान दिया है आज उसके बदौलत हम आत्मनिर्भर है, स्वाभिमानी है !
डॉ कलाम एक प्रेरणाश्रोत – डॉ कलाम के लिए भारत देश पहले था, उनके लिए सब धर्म सामान था, लोगों को प्रेरित किया की वो देश को महत्व दे, शिक्षा, तकनीक को ऊंचाई पर ले जाये, कभी राजनैतिक पक्ष नहीं अपनाया ! युवाओं और बच्चों को अपने सपनों को पूरा करने के लिए हमेशा प्रेरित करते रहे !
विंग्स ऑफ़ फायर – Wings of Fire – इस किताब को पढ़ने के बाद उनके बचपन और उनके संघर्ष को जानने का मौका मिला, कैसे उन्होंने आर्थिक कठिनाइयों के बीच अपना शिक्षण जारी रखा, वहाँ से मिसाइल मैन बनने तक सफर, प्रेरणादायक जीवन की झलक है इस पुस्तक में ….
आज वो हमारे बीच नहीं रहे .. एक उनकी कविता जो नैपथ्य में कहीं उनके शब्दों में गूंज रही ..
एक कविता अग्नि की उड़ान से
माँ
समंदर की लहरें,
सुनहरी रेत,
श्रद्धानत तीर्थयात्री,
रामेश्वरम् द्वीप की वह छोटी-पूरी दुनिया।
सबमें तू निहित,
सब तुझमें समाहित।
तेरी बाँहों में पला मैं,
मेरी कायनात रही तू।
जब छिड़ा विश्वयुद्ध, छोटा सा मैं
जीवन बना था चुनौती, जिंदगी अमानत
मीलों चलते थे हम
पहुँचते किरणों से पहले।
कभी जाते मंदिर लेने स्वामी से ज्ञान,
कभी मौलाना के पास लेने अरबी का सबक,
स्टेशन को जाती रेत भरी सड़क,
बाँटे थे अखबार मैंने
चलते-पलते साये में तेरे।
दिन में स्कूल,
शाम में पढ़ाई,
मेहनत, मशक्कत, दिक्कतें, कठिनाई,
तेरी पाक शख्सीयत ने बना दीं मधुर यादें।
जब तू झुकती नमाज में उठाए हाथ
अल्लाह का नूर गिरता तेरी झोली में
जो बरसता मुझपर
और मेरे जैसे कितने नसीबवालों पर
दिया तूने हमेशा दया का दान।
याद है अभी जैसे कल ही,
दस बरस का मैं
सोया तेरी गोद में,
बाकी बच्चों की ईर्ष्या का बना पात्र-
पूरनमासी की रात
भरती जिसमें तेरा प्यार।
आधी रात में, अधमुँदी आँखों से तकता तुझे,
थामता आँसू पलकों पर
घुटनों के बल
बाँहों में घेरे तुझे खड़ा था मैं।
तूने जाना था मेरा दर्द,
अपने बच्चे की पीड़ा।
तेरी उँगलियों ने
निथारा था दर्द मेरे बालों से,
और भरी थी मुझमें
अपने विश्वास की शक्ति-
निर्भय हो जीने की, जीतने की।
जिया मैं
मेरी माँ !
और जीता मैं।
कयामत के दिन
मिलेगा तुझसे फिर तेरा कलाम,
माँ तुझे सलाम।
I enjoyed it
Thanks.