वो अनाम है,
अनुत्तरित प्रश्न है,
बस संवाद का एक शक्ल था,
अतीत में मिला उसे..
निस्तब्धता के अनेकों प्रयास ने,
उपेक्षित किया है उसे बार बार,
प्रतिध्वनि उठती है कई,
अवआकलन ही मिला उसे ..
जीवंतता के स्वर है उसके,
फिर भी एक अवनति सी है,
नफरत पसंद नहीं है वो,
हरकदम द्वेष ही मिला उसे ..
असंग हो बनो अग्रसर,
सब द्वन्द से परे बन,
प्रहसन बने न पथ कभी,
इस तरह जीवन बोध हुआ उसे .. !!
#SK
बहुत बढ़िया रचना , शुभकामनाये !
Dhanyawad Mitr ..