तूफान जो उठने वाला है यहाँ,
ओढ़ ली है फ़िज़ा ने ख़ामोशी,
चाँद ने थोड़ा सरका लिया,
घूँघट अपना बादलों की ओट में !
कोई हलचल नहीं है किधर भी,
पेड़ के सब पत्ते स्तब्ध है परे,
जैसे ओढ़ ली है चुप्पी सबने,
तूफान जो उठने वाला है यहाँ !
पूरा आसमां भर गया है,
आशंकाओं के बादलों से,
बरस पड़ेगी खुद ही जैसे,
कोई पूछ ले कुछ सवाल तो !
कुछ ऐसी ही तो उठती है,
द्वन्द मन में कभी कभी,
ऐसी ही उदासी छाती है,
तूफान जो उठने वाला है यहाँ !
#Sujit
very good job
सुन्दर प्रस्तुति !
आज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !
आभार.. सराहना के लिए !