वर्तमान से उस आने वाले समय की परिकल्पना कैसे उमड़ रही !
जैसे वो कहा रहा – मैं नहीं जानता इस पार दूर खड़ा, देखता लहरों को मन में आते और जाते,
ज्ञात नही है मुझे, कैसा है उस पार का तट; कैसी खामोशी होगी उस तट पर !
या होगा लहरों का वही शोर .. नहीं जानता में कुछ भी .. !!
कशमकश जों कभी जंजीर सी बन जाती पैरों की,
ये हर बार की तरह कुछ दिनों की नाकाम कोशिश,
छुप जाऊँ इस भीड़ से दूर जाके, ना जाने में क्या सोचता, कुछ ऐसे .. !
नाता भी अजीब है अजनबी होने का अहसास ही मिटा देता,
फिर छुपने या दूर जाने की हर कोशिश बेमानी सी लगती !
feeling Not as a Stranger.. IN Night & Pen : SK …. !!