मायूसी को हँसी बनाएँ – Let’s Live Our Life Each Day With A Smile

खुशी की क्या परिभाषा .. और हर हमेशा घिरे महसूस करते जिससे यही है गम ?
याद है .. कब पढ़ी थी पिछले दफा किताब की दस पंक्तियाँ सुकून के साये में !
कितने उलझते जा रहे है इस आपा धापी में .. कितना ? ये भी तो सोचने का वक्त नहीं !

मायूसी को कुछ ज्यादा ही जगह दे दी है हम सबने .. दफ्तर जाने की भागदौड़ में इस कदर हम घिर गये है,
नये सुबह की हँसी, खुशी.. हर रोज की नयी हवायें कुछ महसूस ही नहीं कर पाते,
बस किसी कोने में रोज होते दिन में शाम को जोड़ने की कवायद में लग जाते..
आशंका है अगले पदोन्नति में कुछ कम ना मिले, कहीं दूसरे को ज्यादा ना मिल जाये,
कभी कोसते इन सड़कों की भीड़ को, कभी राशन की महंगाई को, कभी नेताओं के भाषण को,
जिंदगी को इतनी गणनाओं के साथ जीने लगते जैसे अपनी ही जिंदगी की किश्तें अदा करनी हो किसी को,
ना हम अपनी छुपी भावनाओं को समझते ना अंदर उठने वाले सवालों से रूबरू होते,
स्कूल की भागदौर को देखे .. छोटे बच्चे भी सोते जागते नाइंटीज़ प्लस की चिंता में खोये रहते ;
कौन देख पाता क्या कुछ हसरतें दबती चली जाती उनकी, क्या इच्छाएँ है उनकी करने की बनने की !
फिर निकलते उम्र में थोड़े आगे और खो जाते एक छद्म दुनिया में जिंदगी में रंगीनियाँ खोजते
आजादी खोजते, और उस छद्म आभाषित दुनिया में सब खुशियों के मायने छुटते चले जाते !

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मायूसी को हँसी बनाएँ

अपने मन की बनाई नजाने कितनी अनेकों उलझनों से बस शिकन को सजा लेते हम ..
जिंदगी वाकई खूबसूरत है हर सुबह.. हर शाम.. हर रात.. क्योँ खोये इसे हम
कभी देखा जाये जिंदगी को इस शिकन और शिकायतों से निकल कर भी !
शिकायतों से परे .. शिकस्त की डर से दूर; कभी अपने आप से बात कीजये और खुद खुशियाँ आपके अंदर छिपी है,
इस बस हमने कहीं दबा दिया है छुपा दिया है !
“मायूसी को हँसी बनाएँ”.. ना गम हमेशा रहता ना खुशी बस ये चाँद की तरह है अमावस और पूर्णिमा के बीच बढ़ता घटता!

बस इसी आपाधापी में एक शाम से कुछ शब्द

उस शाम लोहे के पुल से गुजरते,
मैंने चाँद देखा..
बादलों से घिरा घिरा आधा अधूरा सा..
फिर अगले दिन ..
पूरा आसमां आज नया नया सा था..
चमकता चाँद आज मुस्कुराते हुए नजर आया !

#SK Random Thoughts …. In Pursuit of Happiness

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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