कब आते हो ..कब जाते हो
ना आमद की आहट .. ना जाने की टोह मिलती है !
कब आते हो ..कब जाते हो !
ईमली का ये पेड़ हवा में जब हिलता है तो,
ईटों की दीवारों पर परछाई का छीटा परता है,
और जज्ब हो जातें जैसे !
सूखी मट्टी पर कोई पानी के कतरे फ़ेंक गया हो ..
धीरे धीरे आँगन में फिर धुप सिसकती रहती है ..
बंद कमरे में कभी कभी ,
जब दिये की लौ हिल जाती है तो,
एक बड़ा सा साया मुझे घूँट घूँट पीने लगता है !
कब आते हो कब जाते हो दिन में कितनी बार तुम याद आते हो !! #Gulzar