अब पूरी तरह नहीं ढाला जा सकता शक्ल में ; मन के किसी कोने में अब किसी तस्वीर का धुंधला सा प्रतिविम्ब है जिसने उँगलियों को जैसे बरबस पकड़ के चलाया हो । कुछ उभरी कुछ आकृति कोई चेहरा कौन हो तुम मेरे शब्दों की छुपी कल्पना सी मेल खाती है लेकिन वो तुम नहीं हो । तुम एक अनुतरित्त प्रश्न हो ; बेशक्ल ; बेजुबान बेमन से खींची गयी आकृति ! तुम्हें शब्दों की शक्ल नहीं दी जा सकती ; तुम्हें स्वर से सजाया नहीं जा सकता । तुम श्यामपट्ट पर फैली ख़ामोशी मात्र हो जिससे संवाद का प्रयत्न व्यर्थ है !
एक चित्र से वार्तालाप
ब्लैक कैनवास पर तुम्हारा चेहरा,
उकेरना इतना आसान भी नहीं था,
कोई एक तस्वीर ठहरती मन में तो,
झट से कागज़ पर उतार देता,
कई आती जाती स्मृतियाँ थी,
कोई मुक्कमल सा चेहरा उभरा नहीं,
मैं सोचता जब संजीदगी भरी आँखे,
हँसी वाली एक तस्वीर सामने से हो आती,
सोचा था तेरे गुस्से का कुछ रंग लूँगा,
मासूमियत की कई तस्वीर सामने आ गयी,
आखिर कई पुरानी तस्वीरों और चेहरों को सोचा,
बस एक आकृति सी उकेर पाया,
अब तुम हो या मेरी कल्पना कुछ फर्क नहीं जान पड़ता,
झुल्फों का एक गुच्छा उलझ गया था,
मैंने ब्रश को रंगों में डुबो के उसे सुलझाया,
एक लट को यूँ चेहरों पर लेके थोड़ा घुमा सा दिया,
अब कुछ कुछ तुमसे मिलती है तस्वीर मेरे ख्यालों की !!
Sujit – In Night & Pen
बेहतरीन post, धन्यवाद