विल यु बी माय फ्रेंड अगेन ?
क्या फिर से तुम मेरे दोस्त बनोगे ??
दोस्त तो हम है ही,
नहीं फिर से वैसे ही जैसे हम थे लेकिन जैसे हम अभी नहीं है ।
फिर से उसी तरह सुबह को रोज नए ढंग से जगाते हुए हर शाम की तेरी उदासी को बहलाते हुए ;
हर रात को थपकियों से सुलाते हुए ।
फिर वैसे ही सब …
कुछ अनमने अटपटे से बातों की ख़ामोशी मन में उमड़ते रहे ; उसके भी मेरे भी ।
फिर हाँ ठीक है – यस आई विल !
धीमे धीमे से कहना रोक नहीं पाया
” बन पाओगे .. फिर वैसे ही .. शायद नहीं “
ऐसा क्यों कहा ?
पता नहीं बस ऐसे !
मन ही मन गुनगुनाने का मन करने लगा “आँख से दूर ना हो दिल से उतर जायेगा ” ।।
Inbox Love Bring By – Sujit
Read – Love in Inbox Part – 1 Love in Inbox Part – 2 Love in Inbox Part – 3
भावनाओं क हिचकोले हैं आपकी पोस्ट में
shukriya !!
very nice , true from the heart. poets capture the basic essence of human emotion
thanks …
Thanks for appreciation 🙂