कुछ नहीं..
क्या कुछ नहीं ?
नहीं नहीं फिर भी ??
एक ख़ामोशी के संवाद के लौटने तक ;
स्तब्ध सन्नाटा जैसे शब्द बंधन तोड़ निकलना चाह रहे ,
पर निकल ना सके ;
पसरी ख़ामोशी को तोड़ते हुए ;
बनावटी से शब्दों से ;
बस ऐसे ही .. “कुछ नहीं ” !!
और तब ..
क्या और ?
हाँ क्या ?
तो फिर !
संवाद के आगे क्या ;
नजाने क्या ; पता नहीं लेकिन ,
और तब एक गुजारिश है शायद ;
शब्दों का सिलसिला रुके नहीं ;
थमे नहीं ; रुके नहीं ये कारवां ;
कुछ कहते रहो ;
कुछ भी नहीं है कहने को ;
फिर और तब ..
से आगे की कुछ बात !!
Inbox Love Bring By – Sujit
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