वार्तालाप बस दिनचर्या की तरह,
जैसे अधूरी ख्वाहिशों की सेज हो,
कोई समझौते की बंदिश है इसपर,
या शब्दविहीन तल्खी हो कोई अंदर !
रोज खिड़की से दिखती सुबह,
और झुरमुटों में डूब जाती शाम,
बिना कुछ बातों के कैद सी है
अनकहे बातों की लम्बी दास्तान !
वार्तालाप विहीन बीतते दिनों को,
इंतजार है बोलती हुई सुबहों का !
#SK