नियति पर नियंत्रण नहीं,
परिस्थितियों का मौन आवरण,
क्यों मन तू होता आकुल ?
व्यर्थ के चिंता से व्याकुल !
तू पार्थ सा संग्राम में,
नियति को दे आमंत्रण,
चुनौती को दे निमंत्रण,
विपरीत समय पर प्रतीक्षा कर,
मिथक तोड़ तू आगे बढ़,
मनुज तो ऐसा चिंतन कर,
आशंका से अब तू निकल,
जीवन संघर्ष से कैसा डर !
#SK ~ #LifePoet