जहाँ कोई संवाद नहीं है वहाँ कौन सी संवेदना है जो जोड़ती है दो अनजान कृत्रिम आयाम में दो शख्सों को ! एक दिन अखबार में पढ़ा दूर दूर सुदूर ग्रहों पर हम नहीं जा सकते क्योंकि जाने में 200 – 300 साल और उतनी हमारे पास सांसें नहीं ! पर जाने की रफ्तार प्रकाश से भी तेज हो तो ? प्रकाश से तेज हमारा मन !
हाँ वही मन जो बिना बोले बात करता ; बिना तुम्हारे पास पहुँचे तुमसे मिल लेता ! बिना समझाये तुझे समझ लेता ! जब लगता कोई रिश्ता नहीं ; वो अधूरी पहचान भी जब खोने लगती ; जैसे वर्षों पुरानी भूली बिसरी कोई कहानी ; कोई गुमनाम गली, कोई अनजान चेहरा, कोई सुदूर शहर, कोई छूटा हुआ साथी !
पता नहीं तुम क्यों नहीं भूलते वर्षों पुरानी बात, तुम्हारी जिंदगी अनेकों लोग, अनेकों जज्बात, अनेकों साथ में तुम क्यों खींच लाते हो एक “quote”, एक किताब, कुछ स्माइली, कुछ gtalk स्टेटस, कुछ sms, कुछ ना उठाये हुए कॉल्स, कुछ ड्राफ्ट मैसेज ! कृत्रिम दुनिया के कृत्रिम साथी तुम्हारा अस्तित्व वास्तिवक हो जाता, जैसे हवा उलट देता मेज पर रखी किताब को और निकल आता वो एक पन्ना जिसपर लिखी हो तुमसे जुड़ी नज्में !
पुरे साल ख़ामोशी पर दिसंबर कुछ कह रहा ~ मेरे “Unmet Friend” तुम कभी नहीं मिलना मुझसे !
#SK