इंसान जड़त्व को स्वीकार नहीं कर सकता । इस वैश्विक महामारी ने हमारे अंदर जड़त्व को ला दिया है । खिलाड़ी खेले नहीं, एक्टर अभिनय नहीं करें, छात्र पढ़े नहीं, कर्मी कार्यालय नहीं जा सकते । बच्चे खेलने नहीं जा सकते । मंदिर मस्जिद पूजा अर्चना .. घूमना फिरना … सब पर जैसे कोई ग्रहण लगा हो । जीवन रुक सा गया है … । क्या कितना रुका हुआ है इसे बस चंद शब्दों में नहीं समझा जा सकता ।
न उपचार, न टीका जैसे पूरे दुनिया के लिए एक गुत्थी जो सुलझे न सुलझे ।
कोई क्यों न थके पुलिस, डॉक्टर, प्रशासन सभी संक्रमित हो रहे, और बिना लक्ष्य के एक रेस भी है तो कबतक जाँच, ट्रेसिंग, आइसोलेशन, ट्रीटमेंट चलता रहेगा । कोई उम्मीद भी नहीं बंधती न चिकित्सा न रोकथाम ! अपने आप को रोजमर्रा में कोई कैसे बचा के रख सकता और कबतक ?
लॉक – अनलॉक के बीच फँसी है मानव जिन्दगी … लॉक हो तो आर्थिक चुनौती ! अनलॉक करो तो महामारी का डर ! आय बंद, लगातार खर्च, जड़त्व जिंदगी, उहापोह मन किसके मन में तनाव पैदा न हो ? ये कैसी दुनिया बन रही जहाँ लोग अपनी जिंदगी को खत्म करने के लिए विवश हो रहे । उम्मीद बांधे भी कोई तो कबतक ?
घुटन .. लॉक – अनलॉक के बीच !
ये किस घुटन में घुट रहे है सब ;
मुझे अब खुली हवा में साँस लेना है !
इन दीवारों के बीच कैद जिन्दगी से निकालो,
मुझे किसी खाली खेतो में जी भर के दौड़ना है !
तडपते घुटते चेहरे अब देखे नहीं जाते,
मुझे सब साथी संगी के संग खिल-खिलाना है !
तेरी चौखट पर भी संगीन के साए है,
मुझे अब तेरे दर पर सुकून से सर झुकाना है !
ये नकाबपोश सी दिन और रातें,
मुझे सूरज की रौशनी और चाँदनी में नहाना है !
घुट रहा हूँ जैसे कितने दिनों से,
मुझे अब खुली हवा में साँस लेना है !
#Sujit