आज फिर वंडरलैंड से कुछ बातें .. इस शहर की कुछ बातें ! सुबह की ठंडी होती चाय को छु के महसूस करते की अभी भी कुछ देर इसे उलझाया जा सकता है इंतेजार में !
भीड़ों में भागते .. हिस्सा बनते इस दौड़ का .. बस इतनी सी बात इस शहर को वंडरलैंड नहीं बनाती ; इसी भागदौड़ में अनेकों चेहरों से रूबरू होना, खुद को तलाशना .. खुद को पाना.. कभी खुद में खो जाना .. और कभी खुद को ही भूल जाना .. कितने ही आयाम है इस वंडरलैंड के !
ये शब्द हिस्सा है हमारी या आपकी जिंदगी का, इन शब्दों ने तराशा है प्रेरणा दिया है इक इंसान बनने की, और अपने आप को समझने की .. स्वंय विकसित करने की प्रक्रिया सतत है;ज्ञान भी समय के साथ विस्तृत होता रहता; हम किसी इक बिंदु पर जरत्व को पाकर विस्तार को नहीं पा सकते ! इंसान का नजरिया भी इसी तरह है .. परिस्थितयों और चुनोतियों में घिर के ही इक नये अनंत की ओर अग्रसर होते !
कुछ महसूस सा हुआ की एकतरफा सँवाद या मनःस्थिति में कहीं इक चित्र सा बन गया था मस्तिष्क में, खुद का अवलोकन करने पर पाया की इक रूप रेखा और अपने विचारों के अनुरूप सब चीजों को देखने से,हम वास्तविकता से परे हो जाते और फिर वही देख पाते जो हमारे मस्तिष्क में गढा गया हो .. स्वयं को सम्पूर्णता को ओर ले जाने के लिये आवश्यक है विचारों का पुनर्निर्माण, पुरातन होते वैचारिक बंधनों से मुक्ति !
अक्सर हम कहते “अरे वो ऐसे कर रहा” .. “वो इस तरह बोलता” ; “इस तरह करता” !!
कहीं ना कहीं हम लोगों के बीच जीवन के बीच इन चीजों को भूल जाते, हर इंसान का अपना जीवन होता और उस जीवन को जीना का अपना नजरिया.. यह साब कुछ आता इस तरह जिस परिवेश में वो पाले बढ़े ! अपनी जिम्मेदारियाँ और अपने संघर्ष से ने सबको तराशा है; उसी से उन्होंने अपने जीवन पथ को निर्वाह करने का मार्ग चुनाव है ! हम हर किसी को अपने जीने के नजरिये से देखेगें तो विषमताओं के अलावा कुछ प्राप्त नहीं होगा !
वैचारिक विभिन्नता सहज है जीवन में .. इसे मतभेद ना बनाये .. जो आपसे सहमत है प्रभावित है वो आपके विचारों को अपने जीवन में ढालेंगे; और जो नहीं सहमत उनसे विभेद कैसा .. अपने बदलाव की ओर अग्रसर रहें !
खुद को तलाशने के लिए ..
खुद से रूबरू होना जरुरी है ।
कुछ पल सुकून में सोचा जाये ..
इन होती सुबह और शाम के बीच हमारी जिन्दगी का नजरिया क्या है । इस बेफिक्र सोच से की .. बस आप अपने व्यव्हार के लिए जाने जायें लोगो के बीच । यादों की पुनरावृति में वो आपको किस तरह याद करते है ।।
कुछ पंक्तियाँ किसी कविता से जिंदगी को परिभाषित करती ..
मौन हूँ ..खो गया हूँ में आस पास;
इस भीड़ में !
लड़खड़ा जाती है शब्दें,
टूट जाती है पंक्तियाँ,
पूर्ण कर दो अधूरे संवादों को,
एक पूर्णविराम देकर !
अंतरद्वंद्व में उलझा गुजरा,
व्यर्थ के पहर बीत गये,
अब अर्थ दे दो बचे वक्त को
एक पूर्णविराम देकर !
#sk – Lost in Wonderland