ऐसे ख्वाब का क्या भरोसा, नींद में क्या आते जाते टूटते रहते !
ऐसी ही एक नींद भरी रात थी, आज किन यादों को नींद को लेके नींद आयी थी !
ख्वाबों की रातों की एक छोटी कहानी में चंद किरदार है; चंद यादें है !
कल्पनाओं के समन्दरों की गहराई क्या होंगी .. ऐसी ही कुछ अनजाने थे वो ख्वाब ;
किसी पुराने गीत को सुनते या सोचते ये तो उसका मन ज्यादा जानता होगा,
आँखें बेजार सी हो गयी थी.. सर्द रातों में सिहर के नींद में खो चूका था मन !
आस पास स्तब्ध, ओस में नहायी गलियाँ, कुछ शोर कभी कभी आस पास डरावने से लगते,
पर महानगरों की गलियों और मकानों की अनगिनत मंजिलों में ये दब सा जाता सब वहम !
ख्वाब का पहर ….
ये बचपन उसका नहीं था, दूर कहीं घास के मैदान पसरे, अपने बचपन से काफी वाकिफ था वो;
यहाँ काफी सुकून था कोई पहाड़ी गाँव था, शाम को वो अपने छोटे से बाँसों के उबड़खाबड़ से वो निकलता है खेलने,
कुछ दूर ही घास का पहाड़ी ढलान पर, कुछ बच्चे उसके आस पास अपने अपने अटखेलियों में मशगुल !
इसी तरह वो भी किसी कौतुहल में संलग्न कुछ दूर चलते, उसके छोटे कदम लड़खड़ाते हुए ;
कुछ दूर एक पुराने परे बेंच के पास, जैसे उसके इंतेजार में कोई बैठा ! वो पास जाता कुछ पूछता नहीं ;
उसे कोई कविताओं वाली सिंड्रेला की कहानियों वाली परी सी लगती वो, बिल्कुल आसमानों वाली कोई छोटी बच्ची,
जिसके में गोल सी टोपी, और उसके हाथ छोटे उँगलियाँ गालों पर टिकाये जैसे उत्सुक हो कुछ बोलती नहीं,
नन्हीं सी मुस्कान बस .. कौन उसे इसे लाया यहाँ इस सुनसान पहाड़ी मैदानों में ! वो उसके हाथों को पकड़; गोल गोल घूमने वालें,
कुछ कौतूहलता वालें खेल खेलता .. ऐसे कई दिन जैसे उसका बचपन ठहर सा गया था !
फिर शाम होती उसको छोर आता एक सड़क था जहाँ से दूर वो ओझल सी हो जाती ; कहाँ से आती वो हर शाम ना पूछा उसने !
वो खुश था एक नन्हें संगी के संग .. रोज उसके हाथों को पकड़ वहीँ पुनरावृति खेलों की !
और ऐसे ही कितने दिन ..
एक दिन उसी जगह जाता, आज वहाँ कोई नहीं आया था ! वो बार बार सड़क तक जाता पुनः मैदानों तक,
खाली परे बेंचों पर खुद से उलझने की कोशिश में, झाँकता उस पहाड़ी से उतरने वालें रास्ते की ओर, की कोई शायद आता होगा !
फिर बचपना ही ऐसा पैर पटकते हुए कुछ दिन, आदत भूलता हुआ आसपास उन्हीं कुछ बच्चों के शैतानिओं में खुद को उलझाते हुए,
समेटते हुए अपनी कुछ यादों को .. जैसे कोई छुट जाये बचपन उतना याद नहीं रखता !
ऐसे सुबह हो आयी थी .. कुछ यादों में उसके था वो नन्ही सी लड़की, और वो था किसी नये समय !
एक पल मन में टटोलता हुआ कौन था वो बच्चा .. कब का था ये सपना .. कौन सी थी वो जगह !
खूबसूरत था सपना .. खूबसूरत था वो पहर और ये छोटी सी ख्वाबों की कहानी !!
~ सुजीत
सुजीत कुमार जी,
बहुत ही उमदा स्टोरी बचपन में कहानियाँ पढ़ने का मजा ही कुछ और था.
Thanks