ये सब्र ही है है जो दो कदम चल टूट जाता;
पूछता नहीं तुमसे क्या साजिशे किसकी !
हर रिश्ता कैसा जाना अनजाना छुट जाता;
सोचता नहीं अब क्या दोहमते किसकी !
समझा नहीं मैं खुश हो कैसे तू रूठ जाता;
वो क्या कहा था जो, थी ख्वाहिशें किसकी !
क्या कीमती ख्वाब था जो हर रात लुट जाता;
शिकायतें नहीं अब, खुद से नहीं उम्मीदें किसकी !
यूँ तो ताल्लुक भी .. और हक भी नहीं ;
पत्तों से भरा पेड़ भी कभी कभी सुख जाता !
ये सब्र ही है है जो दो कदम चल टूट जाता…
#SK ~ Sometime Life as a Dry Tree !!