किसी आँगन की खामोशी को देखा है,
ना क़दमों की आहट है कोई,
ना पायलों की रुनझुन ही बजते,
ना किलकारी ही गूँजती अब,
ना कोई रूठता ना रोता है !!
ऐसे सुने से परे है हर कोने,
जैसे घने जंगलों में शब्द खो जाते,
ना भूलती है माँ वो …
हर शाम दहलीज पर राह देखती !
पंछी भी हर सुबह बंद खिरकियों से लौट जाती,
हर सुबह खुली मिलती थी जो,
गलियाँ बाट जोहती हरदम,
हँसता हुआ कोई आता था इनमे !
अब भी आँगन उसका अपना ही है,
क्या कोई राहगीर अपने सफर पर निकल गया है ?
In thoughts of silent courtyard .. somewhere !!!
#Sujit …
Image Source : http://www.deviantart.com/art/Summer-s-gone-II-139621419
Main kahi v jau,kano me aawaz yahi aati hai…
Laut k aa ja,ghar ki chaukhat tujhe bulati hai….
bahut achhi panktiyan @sweta ji !!