(वर्तमान परिदृश्य पर कुछ पंक्तियाँ …… )
कानों पर हाथ रख लेने से
शोर खत्म नहीं होता,
बस कुछ देर तक ही रोक पाते है,
अपने आस पास के कोलाहल को ।
और फिर बन्द कानों के पार भी
उतर जाती है वो आवाजें
जो उठती है हक के लिए ।
विरोध के स्वर को लिए वो आवाजें,
हौसलों और मेहनतकश की कंठो से निकल,
गुँजती है ऐसी जैसे हिला दे वो तख्तों को,
सहमति मौन हो सकती लेकिन
असहमति की होती है आवाजें,
जो बन्द कानों के पार भी उतर जाती ।
#Sujit