धूप चढ़ती हुई रोज …
सूखे पत्ते टूट कर बिखरे बिखरे,
जैसे कोई कह गया हो,
अलविदा पुराने रिश्तों को ।
बदलते मौसम के साथ …
खो रही नमी भी मन से,
अब उजाड़ से तपते दिन होंगे,
और होगी मायूसी से ऊँघते दोपहर ।
दिन ढल रहा है…
बिखरे पत्तों को निहारता,
टूटे मन को सम्भालता,
निकल पड़ा है राही ,
शाम की आगोश में सुकून को तलाशने ।
#SK