बारिश, रात और भींगे मुंडेरों से टपकती है बूंदें ही नहीं ,
अनेकों पुरानी यादें भी रिसती रहती है कोनों कोनों से !
वो पुरानी खिड़की जिसके फांकों से एक धार,
चुपके से सिरहाने के कोनों पर आ ठहरती थी !
एक पर्दा का सिरा हवाओं संग बह के लटक गया था बाहर,
उसके लरियों से गिर कर बूंदें फर्श पर सर्पीली सी बहती थी !
चायों की कई खाली प्यालियाँ टेबल पर परी थी,
घंटों बातों में वक़्त को बिताना इस मौसम ने सिखाया था !
अब बेमौसम ही सब आते कई कमरें बंद ही रह जाते है,
बारिशों में किसी ने खोल के वहाँ ठहाके नहीं लगाये !
सूना परा है सब ऊपरी मंजिल के कमरों में ताले है परे कब से,
वो बारिश में कैरम के खेल की नोकझोंक जो नहीं होती अब वहाँ !
#Sujit .. Poetry of Rain !
great collection..inspiring as previous collection! thank you sir for sharing this wonderful poem
Shukriya .. meri kavita ki srahna ke liye !!