शहर के उस ओर का भूभाग, जहाँ हर साल बाढ़ आता, घर बह जाते, सारा जमीं समंदर हो जाता, फिर भी हौसला है उन लोगों का फिर उजड़े को बसाते और जीवन को जीने लौटते !
एक कविता इसी संदर्भ में ~
चौथी मंजिल से शहर के लोग नजारे देखते है,
मिटटी, पानी के घरोंदों के तमाशे देखते है !
कुदरत के कुछ करिश्में फैले है दूर तक,
नजरें जहाँ तक जाती आँखों के इशारे देखते है !
क्या मुक्क़दर है इनका हर बरस एक सा रहता,
खुद ही इसको बनते और बिगड़ते देखते है !
ये जो सुकून फैली है दूर तक इस जहाँ में,
लील लेता है कोई, बेबस वो बस उफाने देखते है !
जो मिटता फिर बदल देते है तस्वीर खुद की,
कौन मिटाता क्या, हौसलें है सब रवानी देखते है !
#Sujit
Picture: घर के सामने गंगा के किनारे विशाल भूभाग में बाढ़ के परदृश्य की एक शाम ! बादल की सुनहरी छटा, ढलता सूरज, खेत, गंगा की टेढ़ी मेढ़ी धाराएँ ! (Bhagalpur, Bihar)
nice poem,thank you for sharing this wonderful poem