जब हम बात करते की हिंदी सिनेमा में कुछ अच्छा नहीं है देखने को, तब ऐसे में न्यूटन जैसी चलचित्र आती और लम्बे समय तक आपके दिलो दिमाग पर छाप छोड़ जाती |
Movie : Newton ( 2017)
Director: Amit Masurkar
Writers: Amit Masurkar (screenplay), Mayank Tewari (screenplay)
Stars: Rajkummar Rao, Pankaj Tripathi, Anjali Patil
संजय मिश्रा, राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी, रघुबीर यादव, अंजलि पाटिल जैसे कलाकारों से सजी ये फिल्म भले बड़े बैनर आइटम सॉन्ग और मसाला म्यूजिक के साथ नहीं है लेकिन कुछ है जो आपको कुछ देखने के बाद कुछ सोचने के के लिए मजबूर करती है | एक जगह जहाँ कहीं का चुनाव प्राइम टाइम की खबर बनती सब दिखती लेकिन ठीक वहीँ 76 लोगों को वोट डालने के लिए क्या क्या होता जो इस मीडिया चकाचौंध से गायब है इसी पैरेलल दो दुनिया के बीच की कहानी है न्यूटन |
सिनेमा की बारीकी को बस इस चीज से समझ सकते की ” पंकज त्रिपाठी एक सीन में चश्मा पहन रहे और रुक जाते अपने सीनियर अधिकारी को देख कर पहले उनको पहनने देते ” तो आप डायरेक्टर, एक्टर के बारीकी को समझ सकते की कितना मेहनत उन्होंने किया है सिनेमा पर | ऐसे गानों की कमी कभी आपको महसूस नहीं होगी लेकिन “चल तू अपना काम कर” और “पंछी उड़ गया” न्यूटन बनाने की पृष्टभूमि को सार्थक करते | अमित त्रिवेदी रॉक वर्जन तो रघुबीर यादव का फोल्क संगीत सुनने लायक है |
क्या लिखा जाये न्यूटन के बारे में सरकारी नौकरी लगी लड़के की कहानी उसकी शादी रूढ़िवादी सोच के पिता सब चंद संवाद में क्या क्या नहीं सोचने को विवश करते |
संवाद/डायलॉग इतने मुक़्क़मल तरीके से सजाये गए की बार बार सुनने को विवश करते ; जैसे
संजय मिश्रा चुनाव प्रक्रिया के बारे में कहते “हम अपना पिछले रिकॉर्ड साफ करते और नया बनाते, भले दागी नेता चुन के जाए लेकिन चुनाव प्रक्रिया बेदाग हो” सादगी है संवाद में थोड़ी संजीदगी है थोड़ी हँसी भी है ; इस क्रम में वो कहते जब माओवादी हमला हो हीरो नहीं बनियेगा वो जो माँगे दे दीजिएगा !
संजय मिश्रा न्यूटन से कहते हैं “उसकी समस्या उसका ईमानदार होना नही है, अपनी ईमानदारी का घमंड है , न्यूटन जी आप कोई अहसान नहीं कर रहे देश पर या समाज पर ईमानदार होके, ये आपसे एक्सपेक्टेड है ईमानदारी से दिल हल्का होता है दिल पर बोझ नहीं रहता ; आप नेचुरल तरीके से ईमानदारी से काम करते जाइये जाइये देश खुद बखुद प्रगति कर लेगा |
मेरे लिए सबसे पसंदीदा संवाद था “न्यूटन को न्यूटन होने का अर्थ जब संजय मिश्रा ने राजकुमार को समझाया ; की न्यूटन ने ये समझाया कुदरत के कानून के सामने सब बराबर न जात पात न धर्म , पहाड़ से चाय वाला और अम्बानी दोनों कूदेंगे तो दोनों एक साथ ही नीचे आएंगे” |
कोई बड़ा काम एक दिन में नहीं होता ; जंगल बनने में वक़्त लगता !
न्यूटन चलचित्र बस सवाल ही सवाल ही करता है कभी सोचियेगा ; चुनाव से कुछ नहीं बदलेगा ; किसको वोट दें ; क्या चुनाव निष्पक्ष होता है ; चुनाव प्रक्रिया कैसा है ; क्या झंडे और डंडे से देश बनता ; आप भी करिये जवाब मिले न मिले |
सब न्यूटन है यहाँ ; नहीं है तो बनिए न्यूटन |
#Sujit