रात अकेली है रो लो,
गिरा लो आँसू कोरो से,
बस सुबह जब निकलों,
इस तरह की बनावट ले निकलना,
चेहरों पर ;
न शिकन ही रहे कोई
न बचे कोई निशां चेहरे पर
बीती रात के ग़मों की ;
क्योंकि ….
ये सुबह अकेला नहीं भीड़ है यहाँ,
और इस भीड़ के कंधे नहीं है ।
#SK
The Life Writer & Insane Poet
रात अकेली है रो लो,
गिरा लो आँसू कोरो से,
बस सुबह जब निकलों,
इस तरह की बनावट ले निकलना,
चेहरों पर ;
न शिकन ही रहे कोई
न बचे कोई निशां चेहरे पर
बीती रात के ग़मों की ;
क्योंकि ….
ये सुबह अकेला नहीं भीड़ है यहाँ,
और इस भीड़ के कंधे नहीं है ।
#SK