तुम आओ लौट के,
देखो सिलवटें बिछावन की,
वैसी ही है अब भी ।
बिखरे बिखरे से पड़े है,
सारे सामान मेरे तुम्हारे ।
देखो हरतरफ हरजगह की,
सब चीजेँ मुँह ताकती सी ।
सुने परे सारे गलियारें,
कान लगाए है दीवारों पर,
पायलों की छन की ताक में ।
हर वो बिंदी वहीँ है अब भी,
याद है अलमारी के शीशों पर,
जो सटा रखे थे तुमने ।
तुम आओ लौट के,
उधरे उधरे से है जो रिश्ते,
उन्हें करीने से सजाने को ।
#SK