** मनसा वाचा कर्मणा**
एक प्रगतिशाल चिंतन के लिए जरुरी है – विरोध ! ! अगर आपका विरोध नहीं हो रहा तो,
तो शायद आप किसी कार्य में प्रगतिशील नहीं है – लोग आपका आकलन करते,
मतलब आपने कुछ ऐसा प्रयास किया है जो आकलन योग्य है !
बिना विरोध जरत्व आ जाता आपकी जिंदगी में, कोई आपको नकारता तो आप अपनी कमियों पर विचार करते,
निंदा और प्रशंसा दोनों ही जरुरी है मनुष्य के लिये !
एक स्वाभाविक प्रक्रिया है मनुष्य की,तत्क्षण अवलोकन से निर्णय लेने की,
विवेक वो है जो आपको विचलित ना होने दे,लोग आपसे फैसलों से नाखुश हो सकते ;
विरोध पर विचार करे, क्या आपके प्रति किया गया विरोध – उचित है ?
सुधार की प्रक्रिया सतत होती, इक बार टटोले मन को;
और अगर आप कुछ भी गलत नहीं पाते, बेबाक हो अपने पथ पर चले !
क्षणिक प्रभावों से विचलित हो कभी भी आपका मन दूरदर्शी नहीं बन सकता !
आपके विचार सही है तो सर्वथा कुछ विरोधो से बिना प्रभावित हुए स्थापित रहेंगे,
सर्वमान्य रुप से स्वीकार किये जायेगें, हाँ अपने कार्यों का परिक्षण जरुर करे,
और जिंदगी को बेबाक हो जीये … !!
~ सुजीत