वो काफिर मंदिर की सीढ़ियों तक ही रहता,
नीचे वहीँ सोचता टटोलता खुद को तलाशता !
तृष्णा थी उसके पास नजाने कैसी ..
अनंत संवेदनाओं से भरी लिपटी !
हवायें धुल सी भरी उसकी ओर आती,
आँखें नहीं मूँदता वो देखता रहता एकटक,
तबतक जबतक कोरो से गीली आँसू ना निकले !
सुनता रहता रेगिस्तानों में उठते झंझावारों
के शोर को..
जैसे निर्जन हो चुके पेड़ों में कुछ नहीं रहा,
सुखी डालियाँ जिस पर पत्ते ही नहीं है गिराने को,
कँटीली झारियों सा निष्प्राण !
बेवक्त उसे लगता फिर सजदा कर ले,
अपने अभिशप्त शब्दों को ले,
वो काफिर मंदिर की सीढ़ियों तक ही रहता !!
#SK
Read – काफिर – I