कितनी आपाधापी है ना ; रेत की तरह फिसलती उम्र ; जद्दोजहत में सजते संवरते बिखरते सपने ; कभी रुकते से कदम तो कभी भागता मन ! ये सब हमारे जीवन का हिस्सा है ! इन सब आपाधापी में खुद से रूबरू होना हम भूल जाते ; कभी टटोलिये अपने मन को कितनी गांठें पड़ी है वहाँ ; कितनी ही गिरहें सिलवटें उभरी है वहाँ !
कभी सब बातों को छोड़ ; ऑफिस से लौटते महानगर की किसी चौराहें पर रुकिए ; देखिये कतार में फिसलती वाहनों को ; बहुत कुछ जिंदगी का नजरियां दिखेगा ! आये एक शाम से रूबरू होते ! किसी ने ट्वीटर पर लिखा था “कनॉट प्लेस दिल्ली में समंदर की कमी पूरा करता” जब भी राजीव चौक में मेट्रो सीढ़ी पर होता था लगता था एक बोझिल भीड़ जलप्रपात की तरह ऊपर से गिर रहा हो ; आपका मन ना चाहते हुए भी उस भीड़ को ओढ़ लेता ; जैसे कितना कुछ पीछे गुजर गया हो पीछे ! एक शाम इस भीड़ को छोड़ते हुए उस समंदर को देखने निकले ; गोल वृताकार एक जैसे भवन ; अनेकों सजी दुकानों के बीच क़दमों को बढ़ाते हुए ; शांत मन से चहलकदमी करता हुआ ! हवायें उजले उजले बड़े खम्बों के बीच से ऐसा शोर कर रहा था जैसे सचमुच समंदर की किनारों पर लहरों का शोर हो ! बस ये मन की अभिवयक्ति ही हो पर हमारा मन हर तरह की कल्पनायें गढ़ सकता और उसे महसूस भी कर सकता ! इस तरह जिंदगी से रूबरू हुई एक शाम !
मन ने कुछ गिरहें खोली, कुछ बंधनों को तोड़ा एक सोच सी उभरी -” जिंदगी ऐसी ही भागती रहती हम जीना क्यों भूल जाते ; निराशा है भले ; नाकामी भी है ! पर नाकामी से ऊपर है अपना प्रयास, हमने कब कुछ ऐसा सोचा कब ऐसा किया की जो मन तक गया हो ; हमेशा ” अपनी बातें, अपनी ख़ुशी, अपनी समस्या” जो हमें ख़ुशी के पलों से दूर करता ! दूसरों की जिंदगी संवारने का हिस्सा भी बनिए ; किसी को हंसाइए ; किसी को जीवन की राह दिखलाइये ; किसी का मार्गदर्शन करिये, किसी की मदद करिये ; देखिये आपको अपनी कशमकश भी कम होती नजर आएगी !
पूर्णता की कोई सीमा होती क्या ? या पूर्णता का कोई समय ! शायद “परफेक्शन” शब्द से इसे जोड़े तो ज्यादा तर्कसंगत हो ! आमिर खान जिन्होंने अपने कार्यों से पुरे सिनेमा जगत को प्रभावित किया ! अपने परफेक्शन के लिए जाने जाते, बस काम की ततपरता ही नहीं विविधता भी एक प्रेरणाश्रोत है सबके लिए ! वो भी एक आम कलाकार की तरह कई साधारण से फिल्में ; पर जीवन को अपने मन और विचारों से बदला ; केवल अपने ही नहीं देश समाज से भी जुड़ के मन को टटोला हमारे लिए भी तो जीवन ऐसे ही है ! एक अलग विचार हम भी रख सकतें उदाहरण अनेक है बस उस परिवर्तन के लिए खुद से रूबरू होना होगा !
हर दिन को नए नजरिये से देखें ; कुछ विविधता भरे जिंदगी में ; बस अपने जीवन से नहीं सबके जीवन से जुड़ने का कुछ ऐसा प्रयास करे ! आपको बोझिल लगता दिन, माह, वर्ष हमेशा नई सौगात की तरह लगेगा !
आप भी अपने आप से रूबरू हो के देखिये ; बहुत कुछ छिपा है आपके मन में ; हम इस जीवन को भरपूर जी के ही सफल बना सकते ! भौतिक सुख सुविधायें क्षणिक सुख दे सकता पर मन का संतोष का रास्ता इस जीवन को जीने में ही है !
एक हिंदी संगीत जिंदगी से ओतप्रोत –
” रुक जाना नहीं तू कहीं हार के
काँटों पे चलके मिलेंगे साये बहार के
ओ राही, ओ राही… ”
(इम्तिहान -)
छोड़े जा रहे इस गीत के साथ ..स्वंय सोचिये .. – #सुजीत