डुग डुग करके साइकिल पर कोई आया ;
पीछे काठ के बक्से लिये बर्फ बेचने आया !
दूर सड़क पर जब वो दिखा सब बच्चों ने आवाज लगाया ;
बड़की चाची को देख सबने अपना मासूम चेहरा बनाया !
बड़की दीदी छोटी गुड़िया छोटा मुन्नू गोलू ;
खुद को जोड़ सब आठ थे गिनती का अंदाजा लगाया !
पच्चीस पैसे का नारंगी वाला पचास पैसे का दूध वाला ;
ये उस बर्फ वाले ने झट से अपना दाम हमें सुनाया !
चाची बोली पैसे नहीं आटा गेंहू मकई के बदले लो ;
मैं दौड़ के झट से बड़ा सा कटोरा ले आया !
खाट पर बैठी दादी बोली एक कटोरी ही देना उसमे ही सब लेना ;
कटोरा पूरा भर के लाओ बर्फ वाले ने वापस हमें लौटाया !
थोड़ी खींचातानी कर बर्फ वाले को किसी तरह मनाया ;
एक कटोरा मकई देके बर्फ सबने मिल के खाया !
गाँव की दुपहर सुनी पगडंडी बर्फ का बक्सा ;
चित्र ऐसा की मन मेरा यादों से भर आया !
– सुजीत
bahut hee acche, Sujit bhai…iss saadagi se likhte ho aur unn baaton ke baare mein, ki mann bhar sa gaya…un purani pag-dandiyon me le gaye tum apni kavita ke jariye….khub, bahut khub!
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Shukriya !!