दिन बोझिल हो बेजार जब,
तन कुछ भी ना कहता,
कुछ ख्वाबों को इस रात का,
जब इक पनाह है मिलता !
सुबह फिर वही वैसी ही होगी,
तब ही आँखें हकीकत को ले हर,
ख्वाब तोड़ने का इक गुनाह है करता !
क्या रोता क्या हँसता,
ना सुनता ना कुछ कहता,
रोज तोड़ता रोज जोड़ता,
रोज ख्वाब कई वो बुनता !
अँधेरों में खुद ही जलता,
खुद को ही वो राह दिखाता !
धीमे धीमे आहट कर चल,
पग पग जीवन ऐसे ही बढ़ता !
#SK
Zindagi ko samjhati kavita 🙂