कई अधूरी कवितायेँ है पड़ी,
कुछ की लिखावटें धुल गयी,
कुछ की स्याही फीकी हो गयी !
कुछ शब्दें थी जो हर सुबह आस पास
लिपट जाती थी जैसे वो रोज की जानी पहचानी
चिडियाँ बरामदे पर आके कौतुहल करती थी,
उसके ही कलरव स्वर थे शब्द मेरे !
अब स्तब्ध सुबह ना कुछ कहते है ना सुनते,
वो सुबह की नज्म शाम तक बाट जोहती है,
नींद जो घोट देती है दम को उठते मन के शब्दों को !
कुछ शब्दें बेमानी भी हो गयी अब,
कुछ को साथ ना मिला वो अधूरी ही रह गयी,
यादों का शोर कम रहा होगा !
कर्कश से शब्दों से बन नहीं परती,
कई अधूरी कवितायेँ है पड़ी !
ना लब्ज है .. ना अहसास है,
बेआवाज सी .. बिखरी हुई ..
कई अधूरी कवितायेँ है पड़ी !
~ सुजीत
कई अधूरी कवितायेँ है पड़ी ! behad khoobsurat