कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना बाबू मोशाय सादे कुर्ते पैजामे में गलियों से जाते हुए ; और लोग उन्हें देखकर बातें बनाते हुए ! कहीं न कहीं अभी भी हमारा समाज ऐसे ही दकियानूसी मानसिकता से घिरा है ; लोग हमेशा अपने आस पास के लोगों में ज्यादा दिलचस्पी रखते, समाज की जिम्मेदारी रचनात्मक होनी चाहिए, बड़े बुजुर्ग आपको किसी विषय पर सलाह देते वो सार्थक है ; लेकिन आपके भविष्य और आपकी जिंदगी का विस्तृत विवरण जब वहीँ समाज करने लगता तो फिर कुछ कटाक्ष कुछ वक्तव्य आपको विचलित करने लग जाते !
बात महानगर की करे तो केवल आधुनिकता मॉल कल्चर और पहनावों तक ही सीमित नहीं रहा ; वहाँ पर सोच को भी आजादी मिली कुछ नया करने की, अपने राह पर चलने की ; और समाज ने भी इसे स्वीकारा ! ये कह सकते महानगर का जीवन एकाकी है किसी का किसी से कोई मतलब नहीं पर दूसरे पहलू पर समाज ने अपने सोच को विस्तृत आयाम दिया है आपके आने जाने, पहनावे, नौकरी, व्वयसाय, शादी जैसी बातों पर समाज में टिका टिप्पणी की प्रवृति नदारद सी हो रही !
उलट अभी भी छोटे शहरों और गाँवों में चौक चौराहों से लेकर फुर्सत सम्मलेन कुछ ऐसे विवरणों से भरा हुआ मिलता ” गुप्ता जी के बेटे की शादी नहीं हुई, शर्मा जी का बेटा पढाई छोड़ गिटार बजा रहा आजकल, अपने पडोसी के बेटे के बारे में जाना नौकरी छोड़कर किताब लिखने का शौक चढ़ा है कहता समाज को बदलेगा” बताये घर में बैठ के लैपटॉप चलता कहता प्रोजेक्ट कर रहा ऐसे भी भला कोई काम होता ! शायद अब भी हम दूर के ढोल सुहाने जैसी मानसिकता से घिरे है महानगर में कोई नौकरी करता ये एक पैमाना हो गया समाज के लिए, इससे आगे उस व्यक्ति के क्या गुण अवगुण, क्या विचार व्वयहार है उस तक नहीं जाते ! क्या प्रतिभा है किसी में वो सिंगर है, जर्नलिस्ट, राइटर, एक्टर, मॉडल, स्पोर्ट्समैन क्यों जाने बस दिल्ली, बम्बई, बैंगलोर में नौकरी उर्फ़ जॉब करता वाह वाह इतने में ही सामाजिक पैमाने का आरक्षण प्राप्त हो जाता और सब लग जाते एक फ़िराक में ” अब शादी करवा ही दिजीए, इतने बड़े शहर में जॉब कर ही रहा” !!
कुछ महीने पहले महानगर को अलविदा कह अपने शहर की और रुख करना आसान कदम नहीं था ; कई बरसों की यादों का एक सौगात सा था साथ, कितने लोगों से मिलना, कितने लोगों का जाना, कितने लोगों का मन में ठहर जाना ! अपने आप को शहर शहर के भावनात्मक जुड़ाव से निकालना आसान नहीं होता ; कितनी अनगिनत पल है कितनी तस्वीरें है जेहन में पर जीवन की अपनी अपनी प्राथिमकताएँ है, हर आयाम में ढलने के लिए हमे तैयार रहना चाहिए ! और कब तक पलायन की व्यथा कथा गाते रहेंगे, अपने शहर से उस शहर तक की दुरी को हमें ही तो पाटना होगा ! कुछ प्रयास तो करने होंगे कुछ बदलाव के लिए बस हमेशा आसान राहों से चलते रहना भी तो रास नहीं आता, ओझल मंजिल और बोझिल क़दमों के होते हुए सफर को संवारना जिंदगी को जिंदादिल हो जीने सा है !
बस रूबरू है आजकल “कुछ तो लोग कहेंगे” की परिपाटी से पर 3Idiots का रेंचो तो लेह लद्दाख में अलग थलग रह खुश था, बस ख़ुशी के मायने की एक तलाश पर निकल चला है राही ; अलविदा कहने का वक़्त नहीं था दोस्तों !!
बाबू मोशाय फिर गाने लगे ” कुछ रीत जगत की ऐसी है, हर एक सुबह की शाम हुई ! फिर क्यों संसार की बातों से भींग गए तेरे नैना … छोड़ो बेकार की बातों में ..कुछ तो लोग कहेंगे !!
#SK – An Insane Poet
सोच को भी आजादी…. शुक्रिया 🙂
Thanks for reading ..