जिद मैंने भी और तुमने भी कर ली ;
रुठने के कोई बहाने नहीं थे ;
थी तो एक जिद;
तुम्हारे पास भी और हमारे पास !
मैंने जिद की पोटरी पर दो गाँठे डाली;
मुझे इसे बहुत दूर ले जाना था ;
तुमने जिद को अपनी जिद में छुपा लिया ;
और वहीँ छोड़ दिया था शायद उसको !
फिर कभी दिखी नहीं तेरे बातों में कोई जिद;
अपनों से इसके मायने पूछना ;
अजनबी कुछ बता नहीं पायेंगे !
जिद मैंने भी और तुमने भी कर ली ;
बस वक़्त बीतता रहा ;
देखता अक्सर सोचता अक्सर ;
जिद अपनी जगह अब भी अड़ा सा है !
#Sujit