खामोश जुबाँ से हो जाऊँ अजनबी ;
या सब कहके बन जाऊँ मैं गुमशुदा !
मैं अब रोज दुहरा नहीं सकता ..
बीती बातों का किस्सा फिर से !
कई बरस बीता कितना,
मुझे तो हर दिन हर लम्हा याद है !
लगता है ना कहानियाँ हो किताबों की,
वो अल्फाज़ वो शिकवा वो यादें,
वो बेमतलब का ही मनाने लगना;
वो बेमानी सा बहलाने लगना !
हर बदलते मौसम को
इक साँचे में सजा के रखा,
मैं इसे कैद कहता हूँ यादों की !
दस्तक सी थी इस शहर में पड़ी,
वो आरजू वो ख्वाहिशें जग गयी,
कैसे किस्सों से निकलकर ..
मुलाकातों की गुजारिश करते !
मैं तो फासलों से फिक्र पूछता रहा,
खलता है ये फासला भी कभी,
कोई मायूसी की वजह पूछता जब,
बेवजह ही बमुश्किल टाल पाता,
क्या कहे सबसे ..
मेरे यादों के किरदार,
डायरी के पन्नों में दफ्न है !
आते नहीं बाहर कभी मेरे इर्द गिर्द,
हाँ अकेले मैं बातें बनाते है मुझसे !
नींद से झकझोर देता हर सुबह,
लगता ख्वाबों की भी कोई दुनिया है क्या !
जा रहे दूर, ना रोकना..
तेरी यादों का क्या..
फिर कल तेरा जिक्र कर बैठे !