कभी कभी छत की ऊपरी मंजिल पर जाता हूँ,
नितांत रात में निहारने आकाश को,
इस भागदौड़ में भूल जाता हूँ
प्रकृति के इस अजूबे को
बचपन से जो नहीं बदला अब तक
मैं ढूंढ लेता हूँ डमरू जैसे ओरियन को ।
जब मास्टर जी ने बताया था तुम्हारे बारे में,
बचपन में उस दिन बड़े खुश हो के
छत पर खोजा था ओरियन तुमको ।
पता नहीं आजकल कोई बच्चा छत पर
तुम्हें ढूँढते आता या नहीं ।
वक़्त की करवट में अब सभी
आकाश निहारना भूल से गये है ।
Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज